तुम बेपरवाह, बेफ़िक्र होकर चलना लेकिन तुम चलना जरूर! 

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आज़ादी मेरा ब्रांड कोई टूरिस्ट गाइड किताब नहीं है न ही यह एक ट्रैवलर की डायरी है। यह यात्रा वृतांत से कहीं अधिक है। यह आपकी रगों में आजादी के अहसास जैसा है। यह उस बारे में है जो आप हैं। हरियाणा में जन्मी अनुराधा और लंदन में रहने वाली अनुराधा की अपनी जिंदगी किसी उपन्यास की कहानी से कम नहीं है लेकिन उन्होंने अपनी यात्रा के बारे में लिखना पसंद किया ताकि वह लड़कियों को उनके सपनों के प्रति प्रेरित कर सकें। अनुराधा ने अपनी किताब के अंत में हमवतन लड़कियों के नाम एक ख़त लिखा है। यह उन सभी लड़कियों के लिए जो खुद या फिर समाज की बनाई हुई बेड़ियों में जकड़ी हुई हैं। पेश है अंश-

मेरी ट्रिप यहीं खत्म होती है। यहां से पेरिस और फिर वहां से वापस लंदन, बस। लेकिन मेरी यात्रा अभी शुरू हुई और तुम्हारी भी। तुम चलना। अपने गांव में नहीं चल पा रही तो अपने शहर में चलना। अपने शहर में नहीं चल पा रही तो अपने देश में चलना। अपना देश भी मुश्किल करता है चलना तो यह दुनिया भी तेरी ही है, अपनी दुनिया में चलना। लेकिन तुम चलना। तुम आजाद बेफ़िक्र, बेपरवाह, बेकाम, बेहया होकर चलना। तुम अपने दुपट्टे जला कर, खुले फ्रॉक पहनकर चलना। तुम चलना ज़रूर!

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तुम चलोगी तो तुम्हारी बेटी भी चलेगी, और मेरी बेटी भी। फिर हम सबकी बेटियां चलेंगी। और जब सब साछ चलेंगी तो सब आज़ाद, बेफ़िक्र और बेपरवाह ही चलेंगी। दुनिया को हमारे चलने की आदत हो जाएगी। अगर नहीं होगी तो आदत डलवानी पड़ेगी, लेकिन डर कर घर में मत रह जाना। तुम्हारे अपने घर से कहीं ज़्यादा सुरक्षित यह पराई अनजानी दुनिया है। वह कहीं ज़्यादा तेरी अपनी है। बाहर निकलते ख़ुद पर यकीन करना। ख़ुद पर यक़ीन करना। ख़ुद पर यकीन रखते हुए घूमना। तू ख़ुद अपना सहारा है। तुझे किसी सहारे की जरूरत नहीं। तुम अपने- आप के साथ घूमना। अपने ग़म, अपनी खुशियां, अपनी तन्हाई -सब साथ लिए-लिए इस दुनिया के नायाब ख़जाने ढूंढना। यह दुनिया तेरे लिए बनी है, इसे देखना ज़रूर। इसे जानना, इसे जीना। यह दुनिया अपनी मुट्ठी में लेकर घूमना, इस दुनिया में गुम होने के लिए घूमना, इस दुनिया में खोजने के लिए घूमना। इसमें कुछ पाने के लिए घूमना, कुछ खो देने के लिए घूमना। अपने तक पहुंचने और अपने आप को पाने के लिए घूमना, तुम घूमना !

अंत में अज्ञेय की कविता और यात्रा शुरू …

द्वार के आगे

और द्वार यह नहीं है कि कुछ अवश्य

है उन के पार किन्तु हर बार

मिलेगा आलोक झरेगी रस धार

या

उड़ चल हारिल लिए हाथ में यही अकेला ओछा तिनका

उषा जाग उठी प्राची में कैसी बाट भरोषा किन का !

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किताब का एक और अंश

लोग कहते हैं कि बचपन के दिन सबसे ख़ास होते हैं, कोई टीन-एज खास बताता है तो कोई ट्वेंटीज़! मुझे तो ये वाली उम्र सबसे खास लगती है, जिसमे मैं हूं। तीस को टच करती, सहज-सी, छुपी-सी, आसान-सी उम्र। हार्मोन्स रह-रह के उबाल नहीं मारते, नए-नए क्रश रात-रात भर नहीं जगाते, ब्रेक-अप्स रात-रात भर नहीं रुलाते। कहने को आप बोरिंग कह सकते हैं, लेकिन मुझे बहुत खास लगती है यह उम्र। किताब पढ़ते हैं तो बस पढ़ते ही जाते हैं, बिना कोई मिस्ड कॉल या बैकग्राउंड में किसी की याद लिए। अपना पैसा थोड़ा कमा लिया है, तो पूरी आज़ादी लगती हैं – घूमने की, पहनने की, बोलने की, फ़िरने की।”

किताब – आजादी मेरा ब्रांड

लेखिका – अनुराधा बेनीवाल

प्रकाशन – सार्थक

मूल्य – 199 रुपए

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लेखक के बारे में

अनुराधा बेनीवाल का जन्म हरियाणा के रोहतक जिले के खेड़ी महम गाँव में 1986 ई. में हुआ। इनकी 12वीं तक की अनौपचारिक पढ़ाई पिता श्री कृष्ण सिंह बेनीवाल की देखरेख में घर में हुई। 15 वर्ष की आयु में ये राष्ट्रीय शतरंज प्रतियोगिता की विजेता रहीं। अनुराधा ने भारती विद्यापीठ लॉ कॉलेज, पुणे से एलएलबी की पढ़ाई की। बाद में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से अंग्रेजी विषय में एम.ए. भी किया। अंग्रेजी अख़बार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के लिए एक समय ब्लॉग लिखती रहीं अनुराधा अंग्रेजी के कई ट्रेवल वेबसाइट्स के लिए भी अपने यात्रा-संस्मरण लिख चुकी हैं। इनके कुछ ब्लॉग पोस्ट्स कई बड़े समाचार पोर्टल्स की भी सुर्खी बन चुके हैं। बावजूद इसके कि हिंदी भाषा इनके अध्ययन का विषय नहीं रही, लेकिन इनकी पहली किताब हिंदी में ‘आज़ादी मेरा ब्रांड’ नाम से आ रही है। यह उनकी घुमक्कड़ी के संस्मरणों की श्रृंखला ‘यायावरी आवारगी’ की भी पहली किताब है।

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