उत्तराखंड: पलायन की आ गई थी नौबत, बकरी पालन ने गाँव में ही दिलाया रोजगार

#goat farming

विकास नगर (देहरादून)। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में ज्यादा लोग रोजगार के लिए पलायन कर लेते हैं, लेकिन पड़ियाना गाँव कपिल सिंह ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने उस गाँव में ही रहकर बकरी पालन व्यवसाय शुरू किया और आज वह अच्छी कमाई भी कर रहे हैं।

देहरादून जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर विकास नगर तहसील के पहाड़ी क्षेत्रों में बसे पड़ियाना गाँव में कपिल अपने परिवार के साथ रहते हैं। कपिल ने दो वर्ष पहले 10 बकरी और एक बकरे से इस व्यवसाय को शुरू किया था।

“मेरे गाँव में सिर्फ में ही बकरी पालता हूं बाकी ज्यादातर लोग बाहर चले गए हैं। इन बकरियों को मिलने से काफी फायदा हुआ है। साल में 50 हज़ार रुपए से ज्यादा की बकरी बिक जाती है,” कपिल सिंह ने बकरियों को पत्तियों को खिलाते हुए बताते हैं।


यह भी पढ़ें- उत्तराखंड: यहां है देश का पहला रेड सिंधी गाय संरक्षण केंद्र

पहाड़ी क्षेत्रों में रोजगार के साधन न होने से ज्यादा गरीब तबके के किसान बकरी, भेड़ और मुर्गी पालन व्यवसाय से अपनी जीविका चलाते हैं। उन्नीसवीं पशुगणना के मुताबिक उत्तराखंड में पशुधन की कुल आबादी मुर्गियों सहित 96.64 लाख है, जिसमें से बकरियों की संख्या 13 लाख 67 हज़ार है।

कपिल ने अपने मकान के पास में ही बकरियों के लिए बाड़ा बनवाया हुआ है। कपिल बताते हैं, “बकरियों के साथ-साथ अब मैंने कुछ मुर्गी भी पाली है और खेती भी करते हैं। इन सभी से घर का खर्चा आसानी से चल जाता है। बच्चे भी अच्छे स्कूल में जा रहे हैं।” जहां एक ओर उत्तराखंड पलायन का दंश झेल रहा है वहीं कपिल ने पहाड़ों में ही रोजगार ढूंढ लिया है।

बकरी पालन की शुरुआत के बारे में कपिल बताते हैं, “एक बार मैं दवाई लेने के लिए विकासनगर तहसील गया था तभी वहां मैंने वहां बकरी पालन की योजना बोर्ड देखा तब मैंने डॉक्टर साहब को बोला तो सहायता मिली और मुझे 10 बकरी और एक बकरा मिला। जिससे अच्छे पैसे मिल रहे हैं।”

पहाड़ी क्षेत्रों के गरीब/सीमांत/बीपीएल/अनुसूचित जनजाति के पशुपालकों को बढ़ावा देने के लिए पशुपालन विभाग ने एस.सी.पी योजना शुरू की है, इसमें चयनित लाभार्थियों को 10 बकरी और एक बकरा दिया जाता है। इस योजना का उद्देश्य ही किसानों के लिए रोजगार का साधन अर्जित कराना है।

इस योजना के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए विकासनगर तहसील के पशुचिकित्सा अधिकारी डॉ. सतीश जोशी बताते हैं, “गरीब और सीमांत किसानों को चयनित करके इस योजना का लाभ दिया जाता है। इसमें 10 प्रतिशत हिस्सा किसान को देना होता है ताकि उसको सब नि:शुल्क न लगे। और वह इस व्यवसाय को और अच्छे से बढ़ा सके।”


यह भी पढ़ें- बकरी पालन शुरू करने से लेकर बेचने तक की पूरी जानकारी, देखें वीडियो

डॉ. जोशी आगे कहते हैं, “पहाड़ी क्षेत्रों में मांस की काफी मांग है इसलिए 10 से 12 हज़ार में एक बकरी आसानी से बिक जाती है। बकरी साल में दो बार बच्चे देती है ऐसे में किसान इस व्यवसाय को बढ़ाता ही चला जाता है।” कपिल की तरह पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले किसान इस योजना से अच्छी कमाई कर रहे हैं।

“अगर किसी के पास रोजगार का कोई साधन नहीं है तो पलायन की बजाय इस व्यवसाय को शुरू कर सकता है। इससे किसान को काफी लाभ भी होगा। खेती के साथ-साथ बकरी पालन से अतिरिक्त आय भी होगी,” डॉ. जोशी आगे कहते हैं।


‘ज़्यादा ख़र्चा भी नहीं होता है’

कम लागत और सामान्य रख-रखाव में बकरी पालन व्यवसाय गरीब किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए आय का एक अच्छा साधन बनता जा रहा है। उत्तराखंड पहाड़ी और जंगली इलाका होने के चलते बकरी पालन में इनका कोई ज्यादा खर्चा भी नहीं होता है। कपिल बकरियों की दिनचर्या के बारे में बताते हैं, “सुबह सात से 11 बजे तक और शाम को तीन से छह बजे तक इनको चराने के लिए लेकर जाना होता है। इन पर खाने-पीने का कोई ज्यादा खर्च भी नहीं आता है।” बकरी पालन व्यवसाय से आज कपिल ने अपने गाँव में एक सफल पशुपालक के रूप में अपनी पहचान बनाई हुई है। 

यह भी पढ़ें- झारखंड में पशु सखियों की बदौलत लाखों लोगों की गरीबी के मर्ज़ का हो रहा ‘इलाज’

Recent Posts



More Posts

popular Posts