ललितपुर(उत्तर प्रदेश)। अपने दो एकड़ खेत के साथ ही मठोले अहिरवार ने दो एकड़ एकड़ खेत और बटाई में लेकर उड़द की फसल बोई थी, इस बार उम्मीद थी कि अच्छी पैदावार हो जाएगी, लेकिन पिछले दिनों लगातार हुई पूरी फसल बर्बाद हो गई।
बुंदेलखंड के ललितपुर जिले के खितवांस गाँव के मठोले अहिवार के परिवार के 13 सदस्य खेती पर ही आश्रित हैं। चार एकड़ में उड़द की लहलहाती फसल देखकर काफी खुश थे कि कि इस बार सूखा जैसी आपदा नहीं आयी बल्कि सवा महीने की बेमौसम बारिश ने मठोले अहिरवार की तरह जिले के अधिकतर किसानों के परेशानी बढ़ा दी है। मठोले अहिरवार (63 वर्ष) चिंतित होते हुए बताते हैं, “बड़ा लड़का और बहू दिल्ली में मजदूरी कर रहे हैं, बाकी लोग घर पर हैं इस बार उड़द कि फसल अच्छी थी लग रहा था पलायन से छुटकारा मिल जायेगा। बच्चे हंसी-खुशी घर पर ही रहेंगे। इस बार सूखा से नहीं अधिक पानी से फसल बर्बाद हो गई। उड़द से ये भी उम्मीद नहीं कि खेत सफाई का पैसा निकल आए, अब किससे उम्मीद करें बच्चों का पेट तो पालना हैं, मजदूरी में बाकी लोग भी दिल्ली चले जाएंगे, हर साल की तरह।”
पिछले वर्षो से लगातार सूखा का कहर मठोले की तरह बुंदेलखंड के किसानों ने झेला, इस बार सूखा नहीं ज्यादा आसमानी बेमौसम बारिस से तबाही मच गई। खरीफ में दलहनी फसलों की जमीनी हकीकत बद से बत्तर हो गयी। पूरे सितम्बर माह में हुई लगातार बारिश से उड़द, सोयाबीन, मूंग और तिलहन ही फसलें बर्बाद हो गयी। उड़द के पौधों की फलिया खेतों में टूट कर गिरने के साथ अंकुरित होने लगी। जिले में किसानों के खेत हरे नही काले रंग के दिखने लगे। दलहनी फसलों में 75 प्रतिशत से अधिक का नुकसान अपनी आँखों से देखकर किसान आर्थिक रूप से टूट चुका है।
अन्ना दूध ना देने वाले पशु गाय, बछड़ और सांड़ (छुट्टा जानवरों ) के आतंक से किसानों की रातें खेतों की रखवाली करते हुई बीती। छुट्टा जानवरों से खरीफ की फसल सुरक्षित कर ली। आखिरी समय की बारिश ने उड़द, सोयाबीन की फसल छीन ली। महरौनी तहसील के छायन गाँव के जशरथ (64 वर्ष) बताते हैं, “उड़द चार एकड़ में बोये थे, शुरू से लेकर आज तक बीस हजार रुपए की लागत लगी। फल-फूल, कीटनाशक, खरपतवार की दवा डाली ऊपर से तीन महीने दिन और रातें जागकर इलावासी (छुट्टा जानवरो) से जैसे-तैसे रखवाली कर पायी। इस झर (बरसात) से उड़द बर्बाद हो गयी।”
पौध से तोड़कर उड़द के दाने दिखाते हुए जशरथ आगे बताते हैं, “किसान खेतों से उड़द के पौध उखाड़कर घर ले जा रहे हैं, फलिया तोड़ रहे हैं उनमें उड़द दागी निकल रही हैं, अब जेहे सब दागी, तीन हजार कुंतल के भी नही बिकना हैं दो-ढाई हजार से ज्यादा के नहीं बिकेंगे।”
“एक रुपए में पच्चीस प्रतिशत भी उड़द की फसल नहीं बची, साहब! उड़द की फलिया सड़ चुकी हैं पूरे साल खाने को दाल निकल आये वो भी आशा नहीं है। कर्जा लेकर खेत में उड़द बोयी, बारिश से कुछ नहीं बचा, अब बच्चों को क्या खिलाएंगे खेती के नुकसान से कर्जा हो गया हम कैसे चुकाएंगे और कैसे जिएंगे, “अपने खेत पर घर कि महिलाओं के साथ उड़द के पौधों से फलिया तोड़ते हुए ललितपुर जनपद से 45 किमी दूर महरौनी तहसील के खिरिया लटकनजू की महिला किसान सुगर (62 वर्ष) ने 75% फसल बर्बाद होने की दुहाई देते वक्त दर्द झलका।
अपने खेत से उड़द की फसल के काटकर उसके बोजे सर पर रखकर कीचड़ के रास्ते चली आ रही महरौनी तहसील के बढई का कुआं गाँव की महिला किसान कृपादेवी (46 वर्ष) बताती हैं, “उड़द की फसल तो नष्ट हो गयी 75 प्रतिशत नुकसान है। फलिया कूटने पर फफूदी निकलती हैं, पौधों की आधी फलियां तो खेतों में झड़ गई। दिन-रात किसान परेशान हुऐ इलावासी ढोरो (छुट्टा जानवरों) से रखवाली कर बचाई, आखरी में भगवान ने बेबजह ऊपर से पानी पटक दिया सब कुछ चौपट कर दिया। अब गेहूं की फसल को कहां से पैसा जुटाएं, चिंता बढ़ गयी।”
स्थिति एक गाँव की नहीं बल्कि जिले का कोई भी गाँव उठाकर देखकर एक जैसी तस्वीर मिलेगी। यह बात भारतीय किसान यूनियन के मण्डल अध्यक्ष कीरथ बाबा ने कहते हैं। वो आगे बताते हैं, “ईमानदारी से कहूं तो जिले की जमीन का सर्वे करा लिया जाय तो 90 प्रतिशत से अधिक उड़द का नुकसान हु।! किसान फिर बर्बाद हो गया। लेखपाल, कृषि विभाग के अधिकारी सहित बीमा कम्पनी की बजह से किसानों को न्याय नहीं मिल पा रहा है। वो कहते हैं इस बार किसानों के साथ अन्याय नहीं होने देगें चाहे आर पार की लड़ाई में अंदोलन ही क्यों ना करना पड़े।”