केला ऐसा फल है जो लगभग पूरे साल बिकता है। सेहत बनाने वाला ये फल किसानों के लिए नगदी फसल भी है। केले की एक एकड़ खेती में एक लाख से डेढ़ लाख रुपए की लागत आती है, और अगर सही तरीके से खेती की जाए तो इतनी ही खेत से डेढ़ से दो लाख रुपए का मुनाफा भी हो सकता है।
गांव कनेक्शन आज खेती किसानी में आप को केले की खेती, रोपाई का मौसम, फसल सुरक्षा और पौध की किस्म और मार्केटिंग के बारे में विस्तार से बता रहा है। भारत में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, यूपी, केरल, बिहार, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मेघालय और मध्य प्रदेश समेत मुख्य उत्पादक हैं। महाराष्ट्र में भुसावल, बिहार के हाजीपुर और यूपी के बाराबंकी-बहराइच में बड़े पैमाने पर केले की खेती होती है।
गांव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश के सफल केला किसान और किसान उद्ममी बहराइच के गुलाम मोहम्मद से केले की खेती के बारे में विस्तार से बात की। बहराइच जिले में जरवल गांव के किसान गुलाम मोहम्मद बड़े पैमाने पर केले की खेती करते हैं, साल 2019 में भी उनके पास 18 एकड़ केला है। कभी 95 रुपए रोज पर मजदूरी करने वाले गुलाम मोहम्मद आज साल में 40 लाख से 50 लाख का टर्नओवर करते हैं। जिसमें बड़ी भागीदारी केले की है। लेकिन उनके आज भी 10-12 खेत पर ही बीतते हैं। गुलाम मोहम्मद अपने खेतों में भी मजदूरों के साथ लगातार काम करते हैं, वो कहते हैं, जिन दिन खेत में कुछ घंटे काम न करूं शरीर दर्द में होने लगता है।
गांव कनेक्शन की टीम जब बहराइच में उनके खेत पर पहुंची गुलाम मोहम्मद केले की घार से के निचले हिस्से से छोटे-छोटे केले तोड़कर फेंक रहे थे, बातचीत का सिलसिला भी यहीं से शुरु हुआ… “केले की घार (घौद) में औसतन 10-15 तक पंजे होते हैं, लेकिन किसान को चाहिए कि वो नीचे के कमजोर वाले फल तोड़ दे, ताकि ऊपर की फलियां मोटी और लंबी हो सकें औसतन एक पौधे की घार में 10 पंजे (केले के बंच) होने चाहिए।” गुलाम मोहम्मद कहते हैं। उनके मुताबिक एक औसत केले से 30 किलो की घार मिलनी चाहिए, कई बार उनके खेतों में 35 किलो तक भी उपज मिली है।
गुलाम मोहम्मद एक एकड़ में 1200 के आसपास पौधे लगाते हैं। जिनकी पौधे से पौधे की दूरी 6 फीट होती है। 13-14 महीने में तैयार होने वाली केले की फसल की रोपाई का सबसे अच्छा समय जून-जुलाई का होता है। केले में पानी की जरुरत ज्यादा होती है, हर 15-20 दिन पर सिंचाई (मिट्टी के अनुरूप) करनी पड़ती है, लेकिन जलभराव नहीं होना चाहिए। जलभराव से तनागलक रोग लग सकता है।
गुलाम मोहम्मद के यहां यूपी के कई जिलों के किसान उनकी खेती देखने आते हैं। वो केले की खेती शुरु करने जा रहे किसानों को कुछ बातें जरुर ध्यान रखने की सलाह देते हैं
1. खेत पूरी तरह समतल हो, वर्ना कंप्यूटर से लेबलिंग कराएं।
2. खेत में जलभराव न होने पाए।
3. खेत में हरी खाद और गोबर आदि का प्रयोग जरुर करें- खुद गुलाम मोहम्मद (मुर्गी की बीट का भरपूर इस्तेमाल करते हैं)
4. कोशिश करें कि 15 नवंबर तक पौधा 2-3 फीट का हो जाए ताकि सर्दियों में उनमें पाला न लगने पाए।
5. सुबह शाम खेत के अंदर जाएं, सिंचाई का विशेष ध्यान रखें, खासकर फ्लवरिंग के वक्त।
गुलाम मोहम्मद केले के अलावा, मुर्गी और अंडा फार्म भी चलाते हैं। पिछले 2 साल से वो कड़कनाथ मुर्गा भी पाल रहे हैं। इसके अलावा उनके पास मछलियों के कई तालाब भी हैं। लेकिन केला उनकी मुख्य फसल है। वो जी-9 किस्म किस्म का केले अपने खेतों में लगाते हैं।
वो केले की रोपाई के बाद उसमें ढैंचा बो देते हैं, जिसे कुछ दिनों बाद बारिश के दौरान सितंबर महीने में उसी खेत में ट्रैक्टर से जुताई कर मिला देते हैं, जिससे खेतों में पोषक तत्व की कमी पूरी होती है। केले के बदल में निकल रही पूतियों (नए पौधों) को हटाते रहते हैं और बरसात के दिनों में पेड़ों के अलग-बगल मिट्टी भी चढ़ाते हैं। फरवरी-मार्च में वो फिर केले की जुताई करते हैं लेकिन ध्यान रखते हैं कि पौधे की जड़ें न कटने पाएं।
गुलाम मोहम्मद की ज्यादातर जमीन ठेके की है। लेकिन वो उसे भी समतल करवाते हैं और उसमें भरपूर गोबर मुर्गी आदि की खाद डलवाते हैं। इसके साथ रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम करते हैं। जो करते हैं उनके मुताबिक वो काफी नियंत्रित और वैज्ञानिक ढंग से होते हैं। मैं शुरुआत में प्रति पौधा 10-15 ग्राम (डीएपी-पोटाश-यूरिया) देता हूं। एक हफ्ते के बाद उसमें ड्रिंचिंग करते हैं। कुछ हफ्ते बाद फिर ड्रिंचिंग करते हैं। सबसे ज्यादा ध्यान देना होता है पानी का। फ्लावरिंग के समय पौधे में पोटाश जरुर दें, इससे फल ज्यादा, वजनदार और फलियों की लंबाई अच्छी होती है।”
गुलाम मोहम्मद के पास पोल्ट्री खाद पर्याप्त मात्रा में होती है तो वो पूरी फसल के दौरान 3 बार इसका इस्तेमाल करते हैं, जुलाई- अक्टूबर और एक बार फरवरी में।
ज्यादा जानकारी और उनका तरीका समझने के लिए वीडियो देखिए
केले की फसल में रोग
गुलाम मोहम्मद बताते हैं, फ्लावरिंग के स्टेज में इसमें रोग लगता है। बनाना बीटल से बचाव के लिए तने से फूल निकलने की प्रक्रिया जब शुरु हो तो वहीं पर दवा डालनी चाहिए। अगर आप एक्सपोर्ट क्वालिटी का केला उगाना चाहते हैं, तो पंजेज पर पाली बैग भी लगा सकते हैं, ताकि दाग-धब्बे न पड़े।
केले की खेती में लागत और मुनाफा
केले के एक पौधे की लागत गुलाम मोहम्मद के यहां 150 से 175 रुपए के करीब आती है। एक पेड़ से 30 किलो के औसतन केला मिलना चाहिए। और अगर 10 रुपए किलो का भाव मिले तो भी 300 रुपए एक पौधे से मिल जाते हैं। इस तरह किसान लागत और मुनाफे का हिसाब लगा सकते हैं। उनके मुताबिक फ्लड में सिंचाई करने से 14 महीने में फसल तैयार होती है, ड्रिप सिंचाई से कई बार ये 13 महीने भी तैयार हो सकती है। इंटरक्रापिंग में कुछ किसान हल्दी भी लगाते हैं।
फसल सुरक्षा के लिए इन बातों का रखें ध्यान
फसल सुरक्षा को ध्यान में रखकर केले की खेती करें तो लागत में कमी के साथ अधिक मुनाफा हो सकता है। यूपी के सीतापुर जिले में कृषि विज्ञान केंद्र-2 कटिया के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डा. दया शंकर क्रमवार ब्योरा देते हैं। सबसे पहले बात फसल सुरक्षा की…
भूमि का उपचार-
1.बिवेरिया बेसियाना- पांच किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 250 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर भूमि में प्रयोग करें। यदि खेत में सूत्र कृमि (निमेटो) की समस्या है तो पेसिलोमाईसी (जैविक फंफूद) की पांच किलोग्राम मात्रा गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर करें।
2. जड़ गाठ सूत्र कृमि केले की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे फसल की वृद्धि रुक जाती है, एवं पौधे का पूरा पोषक तत्व नहीं मिल पाता है। खड़ी फसल नियंत्रण के लिए नीम की खली 250 ग्राम या कार्बोफ्यूरान 50 ग्राम प्रति पौधा (जड़ के पास) प्रयोग करें।
3. कीटों और बीमारियों से बचने के लिए खेत को बिल्कुल साफ सुथरा रखें, शत्रु कीटों की संख्या कम करने के लिए फसल के बीच बीच में रेडी या अरंडी के पौधे भी लगा सकते हैं।
4. मित्र जीवों की संख्य़ा बढ़ाने के लिए फूलदार वृक्ष (सूरजमुखी, गेदा, धनिया, तिल्ली आदि) मेढ़ों के किनारे-किनारे लगा सकते हैं।
5.फसल तैयार होने की दशा में पत्ते और तनों के अवशेष खेत से हटाकर गड्ढों में दबाते रहें। फसल की लगातार निगरानी करें।
6. कीटों की संख्या कम करने के लिए पीला चिपचिपा पाष एवं लाइट ट्रैप का इस्तेमाल करें। केले की खेती के लिए मिट्टी किसान भाई जिस खेत में केला लगाना चाहते हैं, पहले उसकी जांच जरुरी है, ताकि ये पता चल जाए कि ऐसे फसल के लिए जमीन उपजाऊ है कि नहीं, जमीन में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व हैं कि नहीं। इसका सबसे अच्छा तरीका है मिट्टी की जांच कराएं। इसकी खेती के लिए चिनकी बलुई मिट्टी उपयुक्त है, लेकिन इस जमीन का पीएच स्तर 6-7.5 के बीच होना चाहिए, ज्यादा अम्लीय या छारीय मिट्टी फसल को नुकसान पहुंचा सकती है। खेत में जलभराव न होने पाए, यानि पानी निकासी की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए, साथी खेत का चुनाव करते वक्त ये भी ध्यान रखना चाहिए कि हवा का आवागमन बेहतर होना चाहिए, इसलिए पौधे लाइन में लगाने चाहिए। दूसरी बात है अच्छी पौध। टिशू कल्चर से तैयार पौधों में रोपाई के 8-9 महीने बाद फूल आना शुरू होता है और एक साल में फसल तैयार हो जाती है इसलिए समय को बचाने के लिए और जल्दी आमदनी लेने के लिए टिशू कल्चर से तैयार पौधे को ही लगाएं।
जलवायु गर्म तर और समजलवायु केले की खेती के लिए उपयुक्त है। ये फसल 13-14 डिग्री तापमान से लेकर 40 डिग्री तक आसानी से हो जाती है। लेकिन ज्यादा धूप इसके पौधों को झुलसा सकती है। अच्छी बारिश वाली जगहें भी केले के लिए मुफीद हैं। ये भी पढ़ें- गर्मियों में केले की खेती में करें उचित सिंचाई प्रबंधन खेत तैयार करना अच्छी फसल चाहिए तो खेत अच्छा होना चाहिए, इसके लिए जरुरी है कि खेत की मिट्टी उपजाऊ हो। किसान केले की रोपाई से पहले उसमें फसल चक्र अपनाएं। अगर हरी खाद जैसे ढैंचा और लोबिया आदि उगाकर उसे रोटावेटर से उसी में जुतवा दें तो अच्छा रहेगा। मिट्टी में पूरे पोषक तत्व होंगे तो बाहर से रसायनिक खादों का इस्तेमाल कम करना पड़ेगा
खाद एवं उर्वरक
केले की रोपाई के लिए जून-जुलाई सटीक समय है। सेहतमंद पौधों की रोपाई के लिए किसानों को पहले से तैयारी करनी चाहिए। जैसे गड्ढ़ों को जून में ही खोदकर उसमें कंपोस्ट खाद (सड़ी गोबर वाली खाद) भर दें। जड़ के रोगों से निपटने के लिए पौधे वाले गड्ढे में ही नीम की खाद डालें। केचुआ खाद अगर किसान डाल पाएं तो उसका अलग ही असर दिखता है।
सिंचाई निराई गुड़ाई केला लंबी अवधि का पौधा है। इसलिए जरुरी है सिंचाई का उचित प्रबंध हो। बेहतर किसान पौध रोपाई के दौरान ही बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली स्थापित करवा लें। मोर ड्राप पर क्रॉप के तहत एक तरफ सरकार जहां 90 फीसदी तक सब्सिडी दे रही है वहीं सिंचाई में काफी बचत होगी। पानी कम लगेगा और मजदूरों की जरुरत नहीं रह जाएग। ड्रिप सिस्टम लगा होने पर कीटनाशनकों आदि छिड़काव के लिए भी ज्यादा मशक्कत नहीं करनी होगी।
केले को पौधों को कतार में इन्हें लगाते वक्त हवा और सूर्य की रोशनी का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए कई किसान केले में मल्चिंग करवा रहे है, इससे निराई गुड़ाई से छुटकारा मिल जाता है। लेकिन जो किसान सीधे खेत में रोपाई करवा रहे हैं, उनके लिए जरुरी है कि रोपाई के 4-5 महीने बाद हर 2 से 3 माह में गुड़ाई कराते रहे। पौधे तैयार होने लगें तो उन पर मिट्टी जरुर चढ़ाई जाए। पोषण प्रबंधन केले की खेती में भूमि की ऊर्वरता के अनुसार प्रति पौधा 300 ग्राम नत्रजन, 100 ग्राम फॉस्फोरस तथा 300 ग्राम पोटाश की आवश्यकता पड़ती है।
फॉस्फोरस की आधी मात्रा पौधरोपण के समय तथा शेष आधी मात्रा रोपाई के बाद देनी चाहिए।
नत्रजन की पूरी मात्रा पांच भागों में बांटकर अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर तथा फरवरी एवं अप्रैल में देनी चाहिए।
ध्यान देने योग्य बातें
1. केले 13-14 माह में होने वाली नगदी फसल है, जिसमें अच्छा मुनाफा होता है।
2. जुलाई का महीना केले की पौध रोपाई का सबसे उपयुक्त समय होता है।
3. पौधे से पौधे और लाइन से लाइन की दूरी 6 फीट होनी चाहिए।
4. जमीन का समतल होना बहुत जरुरी है, कंप्यूटरीकृत लेवलिंग कराएं।
5. केले की खेती में ज्यादा पानी (सिंचाई) की आवश्यकता होती है।
6. पानी बचाने के लिए किसान ड्रिप इरीगेशन का इस्तेमाल कर खर्च घटा सकते हैं।
7. केले के बगल में निकलने वाली पूतियों (नए पौधों) को हटाते रहें। बरसात के दिनों में पेड़ों के अगल-बगल मिट्टी चढ़ाते रहें।
8. केला 13-14 डिग्री तापमान से लेकर 40 डिग्री तापमान में आसानी से होता है।
9. ज्यादा धूप पौधों को झुलसा सकती है, लेकिन ज्यादा बारिश वाली जगहें मुफीद हैं
10. चिकनी बलुई मिट्टी उपयुक्त है, पीएच का स्तर 6 से 7.5 की बीच होना चाहिए।
11. ज्यादा अम्लीय या झारीय मिट्टी फसल को नुकसान पहुंचा सकती है।
12. खेत में हवा का आवागमन बेहतर हो इसलिए पौधे लाइन में ही लगाने चाहिए।
13. पानी का भराव न हो, तना गलक रोग लग जाता है।
14. एक एकड़ में 1200 पौधे लगाए जाने चाहिए।
15. प्रति पौधा करीब 150 रुपए का खर्च आता है।
16. प्रति स्वस्थ पौधे से औसतन 25 से 30 किलो फल मिलते हैं।
गुलाम मोहम्मद से इस संपर्क करें :
गुलाम मोहम्मद 9839850134